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Wednesday, August 6, 2025

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श्रीनगर की वादियों में साहित्य की बयार, ‘चिनार पुस्तक महोत्सव’ में गूंजे कथानायकों के स्वर ..

श्रीनगर। भारत की सांस्कृतिक आत्मा को शब्दों में पिरोने वाला आयोजन ‘चिनार पुस्तक महोत्सव’ श्रीनगर की मनोहारी वादियों में एक साहित्यिक उत्सव के रूप में उभरा। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम किशोर पाठकों के लिए एक रचनात्मक दृष्टिकोण के साथ आयोजित किया गया, जिसमें देशभर से आए दिग्गज साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के पात्रों को सजीव रूप में प्रस्तुत किया।

इस साहित्यिक महाकुंभ में छत्तीसगढ़ से डॉ. संजय अलंग, हिमाचल से डॉ. गंगाराम राजी, उत्तरप्रदेश से चंद्रकांता और सुभाष चंदर, दिल्ली से डॉ. सुनीता व डॉ. मलिक राजकुमार, राजस्थान से डॉ. राजेश कुमार व्यास और प्रो. रूपा सिंह जैसे मूर्धन्य लेखक शामिल हुए। सभी ने अपनी रचनाओं से जुड़े किरदारों के अंश पढ़े, जिनमें विचार, कल्पना और संस्कृति की गहराई झलकती रही।

कार्यशाला का उद्घाटन न्यास अध्यक्ष प्रो. मिलिंद सुधाकर मराठे ने किया। उन्होंने अपने संबोधन में छत्रपति शिवाजी महाराज का उल्लेख करते हुए ‘राजतरंगिणी’ आधारित नॉवेला पर केंद्रित ऐतिहासिक लेखन की महत्ता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराएं यदि सहज व सुलभ भाषा में प्रस्तुत की जाएं, तो आने वाली पीढ़ियां अपने इतिहास से आत्मीयता के साथ जुड़ सकेंगी।

इस अवसर पर न्यास के मुख्य संपादक एवं संयुक्त निदेशक कुमार विक्रम ने लेखकों को सलाह दी कि वे अपनी रचनाओं में भाषा, शिल्प और शैली पर विशेष ध्यान दें, जिससे किरदार सीधे पाठकों से संवाद कर सकें। उन्होंने यह भी बताया कि कार्यशाला में तैयार होने वाली पांडुलिपियां प्रकाशन से पूर्व विशेषज्ञों के विचार-विमर्श के लिए प्रस्तुत की जाएंगी।

इस मौके पर सभी रचनाकारों ने अपने-अपने पात्रों के ड्राफ्ट अंश प्रस्तुत किए और रचनात्मक मंथन के माध्यम से उनमें आवश्यक संशोधन किए गए। संवाद, सुझाव और सृजन की यह त्रिवेणी कार्यशाला को बेहद सार्थक और जीवंत बनाती रही।

इससे पूर्व कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉ. ललित किशोर मंडोरा, संपादक, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने सभी रचनाकारों का परिचय देते हुए उनके साहित्यिक योगदानों पर प्रकाश डाला और कार्यशाला के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया।

बता दे कि ‘चिनार पुस्तक महोत्सव’ ने यह सिद्ध कर दिया कि साहित्य जब नई पीढ़ी की रुचियों और चेतना के साथ संवाद करता है, तब वह केवल पढ़ा नहीं जाता, जिया जाता है। यह महोत्सव एक नई साहित्यिक चेतना का उद्घोष था जहाँ भारत की विविधता, इतिहास और संस्कार किशोर मन में बीज रूप में रोपे गए।

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