बिलासपुर। सोचिए, जब अस्पताल का ऑपरेशन थियेटर ही अंधेरे में डूब जाए और जिंदगी- मौत के बीच जूझ रही प्रसूता को टॉर्च की हल्की सी रोशनी में बच्चा जन्म देना पड़े, तो यह दृश्य किसी फिल्म का नहीं बल्कि हकीकत का है। बीती रात तखतपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ऐसा ही हुआ।
दरअसल, बेलसरी निवासी ज्योति को तेज प्रसव पीड़ा के बाद अस्पताल लाया गया। डॉक्टरों ने जैसे ही उसे डिलवरी के लिए ओटी में शिफ्ट किया, अचानक पूरी बिल्डिंग की बिजली गुल हो गई। वार्ड से लेकर ऑपरेशन थियेटर तक घुप अंधेरा छा गया। नर्सें और स्टाफ अफरा-तफरी में इधर-उधर भटकते रहे, पर बिजली का कोई इंतजाम नहीं हो सका। आखिरकार एक मोबाइल टॉर्च की रोशनी में महिला की डिलवरी कराई गई। स्थिति और बिगड़ गई जब टांके नहीं लग पाने से रक्तस्त्राव तेज़ हो गया, लेकिन नर्सों की हिम्मत और सूझबूझ से जच्चा–बच्चा सुरक्षित बच गए।
अस्पताल की हालत यह रही कि बिजली न होने से वार्डों में भर्ती मरीज भी परेशान होते रहे। उमस भरी रात में परिजन अपने मरीजों को गमछे से हवा करते नज़र आए। इन्वर्टर ने भी जवाब दे दिया और पूरा अस्पताल गर्मी और अंधेरे में डूबा रहा।

अधिकारियों की सफाई में बीएमओं उमेश कुमार साहू का कहना है कि दिनभर बिजली कटने से इन्वर्टर ने साथ छोड़ दिया। वहीं जेई रचित दुआ ने कहा कि अस्पताल में थ्री-फेज कनेक्शन है, केवल एक फेज बंद था, जिसे आधे घंटे में सुधार लिया गया। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब सरकार संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने और अस्पतालों को सुविधाओं से लैस करने का दावा करती है, तो फिर टॉर्च की रोशनी में क्यों करानी पड़ रही है डिलवरी?
यह घटना सिर्फ एक अस्पताल की नहीं, बल्कि उस सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था का आईना है, जहाँ
सरकार संस्थागत प्रसव के लिए करोड़ों खर्च करने और बेहतर सुविधाओं का दावा करती है, मगर टॉर्च की रोशनी में कराई गई डिलवरी ने इन दावों की हकीकत सामने ला दी। सवाल यह है कि जब अस्पताल ही बीमार हो तो मरीज किस पर भरोसा करें।

